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गोवैभव-शतकाम्

गोवैभव-शतकाम्

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परम श्रद्धेय मुनि महाराज ने 'गोवैभव' नाम इस सदी में गागर में सागर भरने का सफल प्रयास किया है। इसमें गाय के झटके को प्रकाशित करने के लिए उसका दूध, घी, मक्खन, दही व चटनी आदि का विविध जड़ी-बूटियों के साथ प्रयोग करने पर अनेक अभिग्रहण से मुक्ति, बल-वीर्य-सौन्दर्य मेधा व विद्युत आदि की वृद्धि तथा सर्वविध दैहिक व। मानसिक रोग दूर होते हैं। विविध अनुरोधों से प्राप्त करें के साथ-साथ लेखों को विभिन्न जड़ी-बूटियों के प्रयोग का ज्ञान भी इस ग्रंथ से प्राप्त होगा।

देखने में लघुकाय लूंगार यह शतक, विषयकविता और विवरण सामग्री की दृष्टि से निःसन्देह एक वृहद् ग्रंथ तथा रोगोपचार - औषधि कोश के रूप में जाना जाएगा।

आयुर्वेद की प्राचीन ऋषि शैली का बदला हुए महामनिषी मुनिवर ने इसे चरक-सुश्रुत आदि के समान पद्धतिबद्ध करके, हिन्दी दोहों से आकर्षित करके तथा हिन्दी-अंग्रेजी अनुवाद भी करके जहाँ रोगोपचार की सरल व अधिकार प्रमाण का निर्देश दिया है वहाँ प्राचीन शास्त्र लेखन का संरक्षण भी करता है।

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