चतुर्विंशति-जिनस्तोत्रम्(पूजा एवं विधान)
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पूज्य गुरुवर ने ‘चतुर्विंशतिजिनस्तोत्रशतकम्’ की रचना मूलरूप से संस्कृत भाषा में 108 पद्यों में की है, जिसमें 24 तीर्थंकर भगवन्तों की स्तुति विभिन्न छन्दों में की गई है। उसी के साथ पूज्यश्री ने इसका पद्यानुवाद हिन्दी भाषा में लिखा है, जो हिन्दीभाषी पाठकों के लिए सोने पर सुहागा हो गया है। इस प्रकार प्राचीन धरोहर संस्कृत और अर्वाचीन संस्कृति का यह अनूठा संयोग है।
प्रस्तुत कृति में अभिषेक से आरम्भ कर पूजाविधि-विसर्जन तक सम्पूर्ण प्रक्रिया का समावेश किया गया है। श्रावक को अन्यत्र श्रम करने की आवश्यकता नहीं है।
इस शतक में कुल 108 पद्य हैं, जिनमें उपजाति, इन्द्रवज्रा, वसन्ततिलका, शार्दूलविक्रीडितम्, मन्दाक्रान्ता, स्वागता, प्रहर्षिणी, वंशस्थ, रथोद्धता, पंचचामर, रुचिरा, पुष्पिताग्रा, पृथ्वी और अनुष्टुप् छन्दों में रचना की गई है। इसमें 24 तीर्थंकर भगवन्तों की पंचकल्याणक तिथियों का उल्लेख है, जिससे यह विधान सभी तीर्थंकरों के प्रत्येक कल्याणक के दिन उपादेय है।
प्रस्तुत कृति में अभिषेक से आरम्भ कर पूजाविधि-विसर्जन तक सम्पूर्ण प्रक्रिया का समावेश किया गया है। श्रावक को अन्यत्र श्रम करने की आवश्यकता नहीं है।
इस शतक में कुल 108 पद्य हैं, जिनमें उपजाति, इन्द्रवज्रा, वसन्ततिलका, शार्दूलविक्रीडितम्, मन्दाक्रान्ता, स्वागता, प्रहर्षिणी, वंशस्थ, रथोद्धता, पंचचामर, रुचिरा, पुष्पिताग्रा, पृथ्वी और अनुष्टुप् छन्दों में रचना की गई है। इसमें 24 तीर्थंकर भगवन्तों की पंचकल्याणक तिथियों का उल्लेख है, जिससे यह विधान सभी तीर्थंकरों के प्रत्येक कल्याणक के दिन उपादेय है।