धम्मपह
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धम्मपह १०५ गाथामयी रचना अपूर्व है। सर्वत्र शान्तरस को आध्यात्मिक एवं धार्मिक भावनाओं से ओतप्रोत करके प्रस्तुत किया है। प्राइल एवं सरल शौरसेनी प्राकृत का सर्वत्र पूज्यमुनि श्री ने प्रयोग किया है। अन्तरंग के प्रकट हुए भावों को इस गाथामयी रचना में संजोया है। प्रन्यान्त में अकारादिक्रम से गाथाओं का अनुक्रम प्रस्तुत किया है।
धम्मपह ग्रन्य अनेक दृष्टियों से महत्वपूर्ण है।
भाषा ज्ञान करना हो,
आध्यात्मिक ज्ञान करना हो,
धार्मिक ज्ञान करना हो,
क्षमादि दशधर्म,
निःसंकादि आठ अंगों की परिभाषाएँ सीखनी हो तो यह धम्मपह अत्यन्त उपयोगी है।
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अर्हं योग प्रणेता प्राकृत मर्मज्ञ अभीक्ष्ण ज्ञानोपयोगी मुनि श्री १०८ प्रणम्य सागर रचित साहित्य को आप यहाँ से प्राप्त करें