युक्त्यनुशासनालंकार

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आचार्य विद्यानंदिस्वामी जी ने आचार्य समन्तभद्र स्वामी विरचित युक्त्यनुशासन ग्रन्थ की संस्कृत टीका 'युक्त्यनुशासनालंकार' लिखकर इसे और अलंकृत किया है। यह एक न्याय ग्रन्थ है। इस ग्रन्थ में भगवान वीर / वर्धमान के निर्मल गुणों को स्तोत्र रूप में कहा गया है और मोक्ष फल की प्राप्ति की इच्छा की गयी है। मुनिश्री प्रणम्यसागर जी महाराज ने इस ग्रन्थ की संस्कृत टीका को हिंदी में अनुवाद करके भव्यजीवों को कृतार्थ किया है। इस ग्रन्थ के पाठ और मनन से समयग्दर्शन - ज्ञान - चारित्र तीनों ही दृढ़ होते हैं। मुनिश्री ने इस ग्रन्थ को सुबोध, सरल बनाने के लिए जगह-जगह विशेषार्थ भी दिए हैं और शब्दश: अनुवाद भी किया है जिससे कि इसको पढ़कर सभी भव्यजीवों की आत्मोन्नति का मार्ग प्रशस्त हो।

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अर्हं योग प्रणेता प्राकृत मर्मज्ञ अभीक्ष्ण ज्ञानोपयोगी मुनि श्री १०८ प्रणम्य सागर रचित साहित्य को आप यहाँ से प्राप्त करें